Tuesday, March 10, 2015

हिंदुस्तान के गौरवशाली ऋषि-मुनियों का वैज्ञानिक इतिहास !

हिंदुस्तान के गौरवशाली ऋषि-मुनियों का वैज्ञानिक इतिहास !

हिंदु वेदों को मान्यता देते हैं और वेदों में विज्ञान बताया गया है। केवल सौ वर्षों में पृथ्वी को नष्टप्राय बनाने के मार्ग पर लाने वाले आधुनिक विज्ञान की अपेक्षा, अत्यंत प्रगतिशील एवं एक भी समाज विघातक शोध न करनेवाला प्राचीन ‘हिंदु विज्ञान’ था।
पूर्वकाल के शोधकर्ता हिंदु ऋषियों की बुद्धि की विशालता देखकर आज के वैज्ञानिकों को अत्यंत आश्चर्य होता है। पाश्चात्त्य वैज्ञानिकों की न्यूनता सिद्ध करनेवाला शोध सहस्रों वर्ष पूर्व ही करने वाले हिंदु ऋषि-मुनि ही खरे वैज्ञानिक शोधकर्ता हैं।

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• गुरुत्वाकर्षण का गूढ उजागर करनेवाले भास्कराचार्य !
भास्कराचार्य जी ने अपने (दूसरे) ‘सिद्धांत शिरोमणि’ ग्रंथ में विषय में लिखा है कि, ‘पृथ्वी अपने आकाश का पदार्थ स्व-शक्ति से अपनी ओर खींच लेती हैं । इस कारण आकाश का पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’ । इससे सिद्ध होता है कि, उन्होंने गुरुत्वाकर्षण का शोध न्यूटन से ५०० वर्ष पूर्व लगाया।
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• परमाणु शास्त्र के जनक आचार्य कणाद !
अणुशास्त्रज्ञ जॉन डाल्टनके २५०० वर्ष पूर्व आचार्य कणादजीने बताया कि, ‘द्रव्यके परमाणु होते हैं । ’विख्यात इतिहासज्ञ टी.एन्. कोलेबु्रक जी ने कहा है कि, ‘अणुशास्त्र में आचार्य कणाद तथा अन्य भारतीय शास्त्रज्ञ युरोपीय शास्त्रज्ञों की तुलना में विश्व विख्यात थे।’
• कर्करोग प्रतिबंधित करनेवाला पतंजलीऋषिका योगशास्त्र !
‘पतंजली ऋषि द्वारा २१५० वर्ष पूर्व बताया ‘योगशास्त्र’, कर्करोग जैसी दुर्धर व्याधि पर सुपरिणामकारक उपचार है । योगसाधना से कर्करोग प्रतिबंधित होता है ।’ – भारत शासन के ‘अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्था’के (‘एम्स’के) ५ वर्षों के शोध का निष्कर्ष !
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• औषधि-निर्मिति के पितामह : आचार्य चरक !
इ.स. १०० से २०० वर्ष पूर्व काल के आयुर्वेद विशेषज्ञ चरकाचार्यजी। ‘चरकसंहिता’ प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथ के निर्माणकर्ता चरक जी को ‘त्वचा चिकित्सक’ भी कहते हैं। आचार्य चरक ने शरीर शास्त्र, गर्भ शास्त्र, रक्ताभिसरण शास्त्र, औषधि शास्त्र इत्यादि के विषय में अगाध शोध किया था। मधुमेह, क्षयरोग, हृदयविकार आदि दुर्धररोगों के निदान एवं औषधोपचार विषयक अमूल्य ज्ञान के किवाड उन्होंने अखिल जगत के लिए खोल दिए। चरकाचार्यजी एवं सुश्रुताचार्य जी ने इ.स. पूर्व ५००० में लिखे गए अर्थववेद से ज्ञान प्राप्त करके ३ खंड में आयुर्वेद पर प्रबंध लिखे।
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• शल्यकर्म में निपुण महर्षि सुश्रुत !
६०० वर्ष ईसापूर्व विश्व के पहले शल्य चिकित्सक (सर्जन) महर्षि सुश्रुत शल्य चिकित्सा के पूर्व अपने उपकरण उबाल लेते थे । आधुनिक विज्ञान ने इसका शोध केवल ४०० वर्ष पूर्व किया ! महर्षि सुश्रुत सहित अन्य आयुर्वेदाचार्य त्वचारोपण शल्यचिकित्सा के साथ ही मोतियाबिंद, पथरी, अस्थिभंग इत्यादिके संदर्भमें क्लिष्ट शल्यकर्म करने में निपुण थे । इस प्रकार के शल्यकर्मों का ज्ञान पश्चिमी देशों ने अभी के कुछ वर्षों में विकसित किया है !
महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखित ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के विषय में विभिन्न पहलू विस्तृत रूप से विशद किए हैं । उसमें चाकू, सुईयां, चिमटे आदि १२५ से भी अधिक शल्यचिकित्सा हेतु आवश्यक उपकरणोंके नाम तथा ३०० प्रकार के शल्यकर्मोंका ज्ञान बताया है।
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• नागार्जुन
नागार्जुन, ७वीं शताब्दी के आरंभ के रसायन शास्त्र के जनक हैं। इनका पारंगत वैज्ञानिक कार्य अविस्मरणीय है। विशेष रूपसे सोने धातुपर शोध किया एवं पारे पर उनका संशोधन कार्य अतुलनीय था। उन्होंने पारे पर संपूर्ण अध्ययन कर सतत १२ वर्ष तक संशोधन किया । पश्चिमी देशों में नागार्जुन के पश्चात जो भी प्रयोग हुए उनका मूलभूत आधार नागार्जुन के सिद्धांत के अनुसार ही रखा गया।
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• बौद्धयन
२५०० वर्ष पूर्व (५०० इ.स.पूर्व) ‘पायथागोरस सिद्धांत’की खोज करनेवाले भारतीय त्रिकोणमितितज्ञ । अनुमानतः २५०० वर्ष पूर्व भारतीय त्रिकोणमितिवितज्ञों ने त्रिकोणमितिशास्त्र में महत्त्वपूर्ण शोध किया। विविध आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोज निकाली। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में परिवर्तन करना, इस प्रकार के अनेक कठिन प्रश्नों को बौद्धयन ने सुलझाया।
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• ऋषि भारद्वाज
राइट बंधुओंसे २५०० वर्ष पूर्व वायुयान की खोज करनेवाले भारद्वाज ऋषि !
आचार्य भारद्वाज जी ने ६०० वर्ष इ.स.पूर्व विमानशास्त्र के संदर्भमें महत्त्वपूर्ण संशोधन किया। एक ग्रह से दूसरे ग्रहपर उडान भरनेवाले, एक विश्व से दूसरे विश्व उडान भरनेवाले वायुयान की खोज, साथ ही वायुयान को अदृश्य कर देना इस प्रकार का विचार पश्चिमी शोधकर्ता भी नहीं कर सकते। यह खोज आचार्य भारद्वाज जी ने कर दिखाया।
पश्चिमी वैज्ञानिकों को महत्वहीन सिद्ध करनेवाले खोज, हमारे ऋषि-मुनियों ने सहस्त्रों वर्ष पूर्व ही कर दिखाया था। वे ही सच्चे शोधकर्ता हैं।
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• गर्गमुनि
कौरव-पांडव काल में तारों के जगत के विशेषज्ञ गर्ग मुनि जी ने नक्षत्रों की खोज की। गर्ग मुनि जी ने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के जीवन के संदर्भ में जो कुछ भी बताया वह शत प्रतिशत सत्य सिद्ध हुआ। कौरव-पांडवों का भारतीय युद्ध मानव संहारक रहा, क्योंकि युद्धके प्रथम पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी । इसके द्वितीय पक्ष में भी तिथि क्षय थी । पूर्णिमा चौदहवें दिन पड गई एवं उसी दिन चंद्रग्रहण था, यही घोषणा गर्ग मुनि जीने भी की थी

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